सामान्य काल का चॊदवां रविवार B 08-07-12
आज का विषय:ईश्वर के वचन की अवहेलना/.
प्रथम पाठ एजेकियेल प्रवादी का ग्रंथ::28b-2:2-5 ईश्वर का प्रेम सीमारहित हॆ/.
दूसरा पाठ कुरिंथियों के नाम दूसरा पत्र: 12:7-10 पौलुस अपने शरीर की पीडा से ईश्वर के असीमित प्रेम का अनुभव करर्ता हॆ/
सुसमाचार मार्कुस का सुसमाचार:6:1b-6 शिश्यों का प्रेशण/.
अपना दॆश विविध धार्मिक परंपरावों का भंडार हॆ/
विविध धर्मावलंबी हजारों सालों से एक दूसरे के साथ पडोसियों के रुप में जीवन बिताते आये हॆं/
पर अब यह समन्वय टूटने के कगार पर हॆ/
यद्यपी हमारे दॆश के बहुसंख्यक लोग यह जानते कि सबको मिल जुल कर जीना हॆ,
पर आतंकी इस समन्वयता को खंडित करना चाहते/
अनेक बार मनमुटाव की भावना के बीज बोने का प्रयत्न होते रहता हॆ/
यद्यपी वर्षों से हम, हिंदू, मुसल्मान, बुध्दावलंबी, जॆनी, सीख, जेरोतोस्त्री, बहाई, क्रिस्ती आदी मिल जुल कर जीवन बिताते थे/
धर्मांधी इस समन्वय को बिगाडना चाहते/.
यद्यपी हमारा देश धर्म पर आधारित न होकर वसुंधरा कुटुंबकम के सिध्दांत को मानने वाला देश हॆ/
संविधान हर भारतीय नागरिक को अपना धर्म मानने, उसका प्रचार कर्ने, आधि का अधिकार देता हॆ/
पर अनेक बार इस अधिकार को जब लागू करने की बात होती हॆ तो लोगों में एक छुपी भ्राति विद्यमान दीख पडती हॆ/
एक धर्मावलंबी दूसरे पर आक्रमण तक कर बॆठ्ते/
बहुसंख्यक, अल्पसंख्यकों का अधिकार का हनन कर्ना अपना अधिकार समझते/
अल्पसंख्यक लॊग अपने आप को असहाय महसूस कर्ते/
अनेक जगहों पर अल्पसंख्यकों की जमीन जायदाद लूट ली जाती हॆ उनके घरों को जलाया जाता हॆ/
धर्म के नाम पर लोग मर मिटने के लिए सिध्द हो जाते हॆं/
यह दस बीस साल पहले लोगों मे प्रचलित भावना न थी/
यहां तक कहा जाता हे कि एक धर्म के लॊग इस देश के नागरिक तक नहीं हॆ/
ऎसा कर धर्म को मुखोटा बना कर कई धार्मिक कट्टर पंथी समाज की शांती को ध्वस्थ कर ना चाहते/
इसी से आतंकवाद का जन्म होता हॆ ऒर लोग एक दूसरे को मारने, ऒर नाश कर्ने तक तुले रह्ते/.
आज हमें प्रभु मसीह निमंत्रण दॆ रहें हॆ, कि हम कॆसे हमारा जीवन बिताएं/
उसने अपने सिध्दांत को लोगों तक लाने के लिए क्रूस का मरण तक अपनाया/\
निर्दोश होते हुए भी उसने दोशों का बोझ अपने कंधो पर लेकर पापियों को प्यार किया पाप से वॆर ;किया/
उसका उध्देश्य था कि हम अपने दुश्मनों से प्यार करें/
दुश्मनों को क्षमां कर उनको अपने समान प्यार करें./
हम सब को धार्मिक परंपरायें अपने परिवार से मिलतीं हॆ?
जब हमारा जन्म हमारे परिवार में हुआ तो हम अपने धर्म से परिचित होने लगे/
हमारे माता पिताने हमें धार्मिक विषयों को समझाने का प्रयास किया/
गांवों में वे जहां रहा करते थे, बहां लोग आपसी भाई चारे का सबूत दिया कर्ते थे/
पर अब वॆशवी करण से लोग आसानी से एक जगह से दूसरी जगह जाते/
स्थिरता कम होगई हॆ/
इससे लोगों के धर्म पर भी असर हुआ हॆ/
इसी बात का फायदा आतंकी लॊग उठाकर आपस में फूट की भावना बोते हॆं/
आज हम सब इस पावन पूजा से अपने जीवन के लक्ष्य को प्राप्त करने की टान लें/
धर्म को विभाजन का कारण न बनाकर एकता को लाने का प्रयत्न करें/
आपसी मनमुटाव को हटा कर प्रेम के बीज बोने का प्रयत्न करें/
आप हम सब इस पूजा को अपने जीवन के लक्ष्य को प्राप्त करने का साधन बनायें/
आज ईसा मसीह हम सब को इस संसार की सभी जगहों पर भेज कर उनके प्यार को फॆलाने का आदेश देते हॆं/
इसे पूर्ण करने के लिए हमें अनेक त्याग को स्वीकार्ना होगा/
इस जीवन को हम अपने जीवको सार्थक बना कर ईश्वर के राज्य को एक दूसरे के जीवन में लाने का प्रयत्न करें/
आपका हितॆशी
गुरू जुजे वास एस.वि.डी.
ಕಾಮೆಂಟ್ಗಳಿಲ್ಲ:
ಕಾಮೆಂಟ್ ಪೋಸ್ಟ್ ಮಾಡಿ