ಶುಕ್ರವಾರ, ಸೆಪ್ಟೆಂಬರ್ 28, 2012
Let us Break the Word: दैनिक सुविचार sadharan samay ka ravivar kaal B 30-...
Let us Break the Word: दैनिक सुविचार sadharan samay ka ravivar kaal B 30-...: दैनिक सुविचार छब्बीसवां रविवार साधारण काल वर्ष B 30-09-12 आज का विशय:जो ईश्वर के साथ हो वह सही व्यवहार करेगा/ गणना ग्रंथ में से पहला पाठ: ...
Let us Break the Word: 26th Sunday in Ordinary Time year B 30-09-2012 The...
Let us Break the Word: 26th Sunday in Ordinary Time year B 30-09-2012 The...: 26th Sunday in Ordinary Time Year B 30-09-12 Theme: Exorcism 1st Reading Numbers: 11:25-29 unlikely persons get God’s Gift. 2nd Reading Jame...
Let us Break the Word: दैनिक सुविचार sadharan samay ka ravivar kaal B 30-...
Let us Break the Word: दैनिक सुविचार sadharan samay ka ravivar kaal B 30-...: दैनिक सुविचार छब्बीसवां रविवार साधारण काल वर्ष B 30-09-12 आज का विशय:जो ईश्वर के साथ हो वह सही व्यवहार करेगा/ गणना ग्रंथ में से पहला पाठ: ...
ಗುರುವಾರ, ಸೆಪ್ಟೆಂಬರ್ 27, 2012
दैनिक सुविचार sadharan samay ka ravivar kaal B 30-09-2012 Ishwar ke sah ho vah sabheeke saath
दैनिक सुविचारछब्बीसवां रविवार साधारण काल वर्ष B 30-09-12
आज का विशय:जो ईश्वर के साथ हो वह सही व्यवहार करेगा/
गणना ग्रंथ में से पहला पाठ: 11:25-29 दिव्य शक्ति की अनुभूति/
संत याकूब के पत्र में से दूसरा पाठ: 5:1-6 धन्वानों को चेतावनी/
संत मार्कुस के सुसमाचार में से पाठ: 9:38-43,45,47-48 जो हमारे विरुध्द न हो वह हमारे साथ हॆ/
ईसा हमेशा अपने शिष्यों को शिक्षा दिया करते थे/
उसकी शिक्षा साधारण गुरुवों से भिन्न थी/
वह कभी किसी का विरोध न करो सब से समान रूप से व्यवहार करो इस प्रकार की शिक्षा दिया करते थे/
पर कई शिश्य उन की शिक्षा का अर्थ ही न समझ सके/
एक दिन वे आपस में विवाध कर बॆठे तो ईसाने उन से पूछा कि किस पर बहस चल रही हॆ/
तब योहन ने कहा स्वामी एक व्यक्ती हमारा साथी न था तो वह अपदूतों को निकाल रहा था तो हमने उसे ऎसा करने से रोका/
तब ईसा ने कहा ऎसा मत करो जो हमारे विरूध्द नहीं हमारे पक्ष में ही कार्य करेगा/
क्या हमारे जीवन में हमने ऎसे लोगों को नहीं पहचाना जो स्वाभाविक रूप से ईश्वर की से वा करने कभी पीछे न हटे/
धन्य माता कोल्कोत्ता की हमेशा ईश्वर के आत्मा से भरी हुई थी/
जब वह किसी कार्य वश रेल यात्रा कर रही थी तो उसे ईश्वर का बुलावा आया कि वह गरीब से गरीब लोगों की सेवा करे, दुःखी बिमारॊं कोडियों को चूमे/
उन्हों ने तुरंत कलिसिया से अनुमती मांगी, यह एक अचरज ही था क्यों कि अब तक किसी भी मठ्वासिनी को मठ्वासिनि रह कर कोई कार्य करने के अनुमती न मिली थी पर मदर थेरेसाको यह भाग्य मिला/
हम उनके कार्य से चिर परिचित हॆं/
संत ईग्नेसियस जब अस्पताल में चोटिल थे तो उन्हें येसू समाज की स्थापना करने की प्रेरणा मिली जो उन्होंने ईश्वर की महिमा के लिए चुना/
गांधी जी जब रेल यात्रा कर रहे थे तो उन्हें रेल से बाहर फेंका गया/ जो उनके लिए भारत की आजादिके संघर्ष का कारण बना/
उन्होंने अहिंसा को अपने गंघर्ष का साधन बनाया/
वह न केवल भारत को आजाद किये वे जात पात, गरीबी आदि को निकाल फॆंकने के लिए मरते दम तक कार्य रत रहे/
उनके जीवन को लोगों ने अपने जीवन में एक नमूने के रूप मे स्वीकारा हॆ/
संत फांसिस एक अय्याशी व्यक्ती था/
जब वह अपने मित्रों के साथ मॊज मस्ती मे रत थे तो ईसा का प्रेरक आत्मा ने उन्हे झक झोर लिया/
उसने सब कुछ त्याग कर गरीबि को अपने जीवन का लक्ष बनाकर एक ऎसा संत्त बने जो आज भी एक जलती मशाल हॆं/
गरीबी को उन्होंने इस तरह अपना या कि वे उसे लेडी गरीबी कहा कर पुकारते थे/
संत अर्नोळड जान्सन एक साधारण पुरोहित थे/
वे अपने आप को इस काबिल न समझते थे कि वे किसी धर्म संघ की स्थापना करें/
वे बार बार लोगों से कहने लगे वे जर्मनी में एक ऎसा धर्म संघ की स्थापना करें जो जर्मन लोगों की आस्था का चिन्ह बन सके/
उस समय तक किसी ने जर्मनी में विदेश में भेजने के लिए धर्म संघ की स्थापना न की थी/
सबों ने उन्हें हताश किया/
कॊई उनकी बात सुनने तॆयार न थे/
यहां तक कि लोग उन्हें पागल पुरोहित कि उपादि से पुकार ने लगे/
फिर भी वह निराश न हुए/
अंत में वे न केवल एक धर्म संघ के स्थापक बने बल्की ती धर्म संघ के संस्थापक बने/.
हम देख ते कि किस तरह ईश्वर का प्रेरक आत्मा जब पुकार कर किसी को बुलाता हॆ उसे पूरी सहायता प्रदान करता हॆ/
हम देख ते कि हमारी समाजों में अनेक प्रकार की कुरीतियों का बोलबाला हॆ/
इस की दूरी हम तभी कर पायेंगे जब हम अपने अंधर के आत्मा को पहचान पायेंगे/
हम देखते कि कोई भी प्राक्रतिक दुर्घटना के होते ही लाखों लोग धन, ऒर मानव संसाधनों से सहायता करने आगे बढते/
क्या साधारण समाय यह फूर्ती कहां गायब हो जाती?.
कितनी स्वयं सेवी संस्थायें अपना सर्वस्व त्याग कर अनेक प्रकार से सेवा कार्य में निरत हॆं/
वे हमारे आधर के योग्य हॆं/
आज के तीनो पाठ हमें इसी बात के लिए प्रेरणा देने उपयोगी हॆं/
पहले पाठ में गणना ग्रंथ में मूसा लोगों में उनकी आत्मा का एक अंश उंडेल देते/
जो प्रेरणा एक को दी जाय वह दूसरे लोगों के लिए भी उपयोगी सिध्द होती ऒर वे नबीयत करते रहते हें/
संसार में प्रेम, एकता, समन्वय भावना दया ऒर सेवा की होड सब करना चाहते/
पर इस के विपरीत लोगों में प्रेम के बदले दुश्मनी, एकता के विपरीर विघटन की भावना, दया के बदले क्रूरता, सेवा के बदले ग्रणा आदि दिखाई देती हे/
इस का दमन करने अनेक सेवा भावी संस्थायें आती हॆं पर मूल भावना धीरे धीरे लुप्त होने लगती हॆ/
उसे पूरा करने के लिए ईसा मसीह के सिद्दांत ही लोगों को आखिर काम आ सकते हें/
इस लिए आज के तीनो पाठ हमें अपनी सोच को नई दिशा देने के लिए काम आ सकते हॆं/.
ईसा की शिक्षा निरंतर इस संसार के जनमानस के मानस पटल पर अंकित होना हॆ/
इससे हम गांधी जेसे नेताके जीवन में जॆसे उन्होंने अहिंसाका पाठ सबों के जीवन में स्वाभाविक रूप से लागू कराया/
उसी प्रकार आज के युग में हम अपना जीवन भी ईसा की शिक्षा से अनभिग्य नहीं रक सकते/
आइए आज हम प्रण करें किस हमारे आस पास के लोगों मे भाईचारे का पाठ कूट कूट कर भर जाने के लिए हमे क्रियाशील हो जायें/
आपका हितॆशी/
फादर जुजे वास एस.वि.डी.
आज का विशय:जो ईश्वर के साथ हो वह सही व्यवहार करेगा/
गणना ग्रंथ में से पहला पाठ: 11:25-29 दिव्य शक्ति की अनुभूति/
संत याकूब के पत्र में से दूसरा पाठ: 5:1-6 धन्वानों को चेतावनी/
संत मार्कुस के सुसमाचार में से पाठ: 9:38-43,45,47-48 जो हमारे विरुध्द न हो वह हमारे साथ हॆ/
ईसा हमेशा अपने शिष्यों को शिक्षा दिया करते थे/
उसकी शिक्षा साधारण गुरुवों से भिन्न थी/
वह कभी किसी का विरोध न करो सब से समान रूप से व्यवहार करो इस प्रकार की शिक्षा दिया करते थे/
पर कई शिश्य उन की शिक्षा का अर्थ ही न समझ सके/
एक दिन वे आपस में विवाध कर बॆठे तो ईसाने उन से पूछा कि किस पर बहस चल रही हॆ/
तब योहन ने कहा स्वामी एक व्यक्ती हमारा साथी न था तो वह अपदूतों को निकाल रहा था तो हमने उसे ऎसा करने से रोका/
तब ईसा ने कहा ऎसा मत करो जो हमारे विरूध्द नहीं हमारे पक्ष में ही कार्य करेगा/
क्या हमारे जीवन में हमने ऎसे लोगों को नहीं पहचाना जो स्वाभाविक रूप से ईश्वर की से वा करने कभी पीछे न हटे/
धन्य माता कोल्कोत्ता की हमेशा ईश्वर के आत्मा से भरी हुई थी/
जब वह किसी कार्य वश रेल यात्रा कर रही थी तो उसे ईश्वर का बुलावा आया कि वह गरीब से गरीब लोगों की सेवा करे, दुःखी बिमारॊं कोडियों को चूमे/
उन्हों ने तुरंत कलिसिया से अनुमती मांगी, यह एक अचरज ही था क्यों कि अब तक किसी भी मठ्वासिनी को मठ्वासिनि रह कर कोई कार्य करने के अनुमती न मिली थी पर मदर थेरेसाको यह भाग्य मिला/
हम उनके कार्य से चिर परिचित हॆं/
संत ईग्नेसियस जब अस्पताल में चोटिल थे तो उन्हें येसू समाज की स्थापना करने की प्रेरणा मिली जो उन्होंने ईश्वर की महिमा के लिए चुना/
गांधी जी जब रेल यात्रा कर रहे थे तो उन्हें रेल से बाहर फेंका गया/ जो उनके लिए भारत की आजादिके संघर्ष का कारण बना/
उन्होंने अहिंसा को अपने गंघर्ष का साधन बनाया/
वह न केवल भारत को आजाद किये वे जात पात, गरीबी आदि को निकाल फॆंकने के लिए मरते दम तक कार्य रत रहे/
उनके जीवन को लोगों ने अपने जीवन में एक नमूने के रूप मे स्वीकारा हॆ/
संत फांसिस एक अय्याशी व्यक्ती था/
जब वह अपने मित्रों के साथ मॊज मस्ती मे रत थे तो ईसा का प्रेरक आत्मा ने उन्हे झक झोर लिया/
उसने सब कुछ त्याग कर गरीबि को अपने जीवन का लक्ष बनाकर एक ऎसा संत्त बने जो आज भी एक जलती मशाल हॆं/
गरीबी को उन्होंने इस तरह अपना या कि वे उसे लेडी गरीबी कहा कर पुकारते थे/
संत अर्नोळड जान्सन एक साधारण पुरोहित थे/
वे अपने आप को इस काबिल न समझते थे कि वे किसी धर्म संघ की स्थापना करें/
वे बार बार लोगों से कहने लगे वे जर्मनी में एक ऎसा धर्म संघ की स्थापना करें जो जर्मन लोगों की आस्था का चिन्ह बन सके/
उस समय तक किसी ने जर्मनी में विदेश में भेजने के लिए धर्म संघ की स्थापना न की थी/
सबों ने उन्हें हताश किया/
कॊई उनकी बात सुनने तॆयार न थे/
यहां तक कि लोग उन्हें पागल पुरोहित कि उपादि से पुकार ने लगे/
फिर भी वह निराश न हुए/
अंत में वे न केवल एक धर्म संघ के स्थापक बने बल्की ती धर्म संघ के संस्थापक बने/.
हम देख ते कि किस तरह ईश्वर का प्रेरक आत्मा जब पुकार कर किसी को बुलाता हॆ उसे पूरी सहायता प्रदान करता हॆ/
हम देख ते कि हमारी समाजों में अनेक प्रकार की कुरीतियों का बोलबाला हॆ/
इस की दूरी हम तभी कर पायेंगे जब हम अपने अंधर के आत्मा को पहचान पायेंगे/
हम देखते कि कोई भी प्राक्रतिक दुर्घटना के होते ही लाखों लोग धन, ऒर मानव संसाधनों से सहायता करने आगे बढते/
क्या साधारण समाय यह फूर्ती कहां गायब हो जाती?.
कितनी स्वयं सेवी संस्थायें अपना सर्वस्व त्याग कर अनेक प्रकार से सेवा कार्य में निरत हॆं/
वे हमारे आधर के योग्य हॆं/
आज के तीनो पाठ हमें इसी बात के लिए प्रेरणा देने उपयोगी हॆं/
पहले पाठ में गणना ग्रंथ में मूसा लोगों में उनकी आत्मा का एक अंश उंडेल देते/
जो प्रेरणा एक को दी जाय वह दूसरे लोगों के लिए भी उपयोगी सिध्द होती ऒर वे नबीयत करते रहते हें/
संसार में प्रेम, एकता, समन्वय भावना दया ऒर सेवा की होड सब करना चाहते/
पर इस के विपरीत लोगों में प्रेम के बदले दुश्मनी, एकता के विपरीर विघटन की भावना, दया के बदले क्रूरता, सेवा के बदले ग्रणा आदि दिखाई देती हे/
इस का दमन करने अनेक सेवा भावी संस्थायें आती हॆं पर मूल भावना धीरे धीरे लुप्त होने लगती हॆ/
उसे पूरा करने के लिए ईसा मसीह के सिद्दांत ही लोगों को आखिर काम आ सकते हें/
इस लिए आज के तीनो पाठ हमें अपनी सोच को नई दिशा देने के लिए काम आ सकते हॆं/.
ईसा की शिक्षा निरंतर इस संसार के जनमानस के मानस पटल पर अंकित होना हॆ/
इससे हम गांधी जेसे नेताके जीवन में जॆसे उन्होंने अहिंसाका पाठ सबों के जीवन में स्वाभाविक रूप से लागू कराया/
उसी प्रकार आज के युग में हम अपना जीवन भी ईसा की शिक्षा से अनभिग्य नहीं रक सकते/
आइए आज हम प्रण करें किस हमारे आस पास के लोगों मे भाईचारे का पाठ कूट कूट कर भर जाने के लिए हमे क्रियाशील हो जायें/
आपका हितॆशी/
फादर जुजे वास एस.वि.डी.
26th Sunday in Ordinary Time year B 30-09-2012 Theme: Exorcism
26th Sunday in Ordinary Time Year B 30-09-12
Theme: Exorcism
1st Reading Numbers: 11:25-29 unlikely persons get God’s Gift.
2nd Reading James: 5:1-6 share your wealth with the needy.
Gospel Mark: 9:38-43,45,47-48 he that is not against us, is are for us.
Jesus acknowledges the positive activity in people as the activity of the Spirit, which the disciples failed to see.
There are people who claim who are able to drive away evil spirits.
Today we will follow Jesus as a person who understands the reason for being good.
We know in this world there are many different types of evil.
Social evils of rich and poor, educated and un educated, high caste and low caste, etc…
People have tired to do away with this, among them here we mention a few who are important and recent.
Blessed Theresa of Calcutta while traveling, got the inspiration to begin a congregation to relieve poverty and illness..
When Gandhi was traveling in a train and was thrown out of it due to apartheid he got the inspiration to fight to empower Indians.
When Ignatius was recuperating from the wounds of war, did, he receive inspiration to work for the greater glory of God.
When Francis of Assisi was enjoying the company of his friends in pleasuring loving events did he get inspiration to embrace lady poverty?
Saint Arnold Janssen thought he was not fit to found a congregation, but founded three religious societies.
We know there are hundreds of people who, opted to be ideals and models to the world finding inspiration during odd hours.
In the first reading Moses chooses unlikely 72 people to help him, only 70 headed his call.
The other two were in their ten but they too got the spirit and began to prophesy.
Who knows, when God intends to call us for a special work?
The whole world seems to be waiting to alleviate poverty, sickness, inequality and want.
There are social activists who are striving to achieve this reality as NGOs.
There are various action groups which are collecting money, material and personal to bring about this transformation.
The church has always acknowledged this reality right from the beginning.
The document ‘the Church in the Modern World’ is a testimony to this effect.
We see in today’s three readings the reality of God’s goodness, visible in people who otherwise would be unlikely material for such reality.
When God chooses no one can prevent.
Man/woman may say they are not worthy.
Men/women who have been imbued by God’s reality recognize this.
How is it that we can respond to God’s invitation to be his instruments of change?
In today’s Gospel John speaks for all the disciples.
They have been following Jesus and seeing his activities of teaching people.
Some have been close to Jesus like them.
They also found some people using Jesus Name and driving out evil spirit.
The disciples took a bold step to prevent them from doing so.
They were not companions of Jesus companions so John takes the lead and forbids this exorcist.
Jesus comes to know this and instructs his disciples not to prevent those who do the work of God.
Then the work of God is visible in its own power.
We see how those who openly do not profess to be followers of Jesus, often such people are the best philanthropists.
Who are we to judge them?
Then God knows when he has created the universe who is for him and who is against him.
He has sent his own son into this world to be bringing about the reality of reconciliation to all irrespective of cast creed and color.
He enters into the lives of each one.
He does not want any one to be lost.
Let us hope when we participate in today’s Eucharist and listen to all the three readings we are inspired by the goodness they reveal to us in hearing this.
It is not easy then we have to keep the ears of our heart open.
God speaks to us in the depth of this reality.
This will help us to be instruments of God’s merciful grace to be brought in the realm of our surrounding.
Wishing all a happy Sunday.
In the divine Word,
Fr. Joe Vaz svd
.
ಶನಿವಾರ, ಸೆಪ್ಟೆಂಬರ್ 15, 2012
Dedicated Disciple: Shepherd’s Voice
Dedicated Disciple: Shepherd’s Voice: Today’s Gospel Text : And Jesus went on with his disciples, to the villages of Caesare'a Philip'pi; and on the way he asked his discip...
ಸಾಧಾರಣ್ ಸಮಯ್ ಕಾ ಚೊವಿಸವಾಂ ರವಿವಾರ್ ವರ್ಷ್ B 16/09/12 ಆಜ್ ಕಾ ವಿಷಯ್: ಸಾಂಸಾರಿಕ್ ಪರೆಶಾನಿಯಾಂ ವಿಶ್ವಾಸ್ ಕಾ ಮಹ್ತ್ವ್ ಸಮ್ಝಾತಿ ಹೆಂ
ಸಾಧಾರಣ್ ಸಮಯ್ ಕಾ ಚೊವಿಸವಾಂ ರವಿವಾರ್ ವರ್ಷ್ B 16/09/12
ಆಜ್ ಕಾ ವಿಷಯ್: ಸಾಂಸಾರಿಕ್ ಪರೆಶಾನಿಯಾಂ ವಿಶ್ವಾಸ್ ಕಾ ಮಹ್ತ್ವ್ ಸಮ್ಝಾತಿ ಹೆಂ/
ಇಸಾಈಯಾ ನಬಿ ಕೆ ಗ್ರಂಥ್ ಮೆಂ ಸೆ ಪ್ರಥಮ್ ಪಾಠ್. 50:5-9 ಮಹೊನ್ನತ್ ಕೆ ಈಶ್ವರ್ ಪರೆಶಾನ್ ಲೊಗೊಂ ಕಿ ಸಹಾಯ್ತಾ ಅವ್ಶ್ಯ್ ಕರ್ತೆ/
ಸಂತ್ ಯಾಕೂಬ್ ಕೆ ಪತ್ರ್ ಮೆಂ ಸೆ ದೂಸ್ರಾ ಪಾಠ್ 2:14-18 ಕಾರ್ಮೊಂ ಕೆ ಆಭಾವ್ ಮೆಂ ವಿಶ್ವಾಸ್ ಕಾ ಕೊಇ ಅರ್ಥ್ ನಹಿಂ./
ಸಂತ್ ಮರ್ಕುಸ್ ಕೆ ಸುಸ್ಮಾಚಾರ್ ಮೆಂ ಸೆ 8:27-35 ಪೆತ್ರುಸ್ ಅಪ್ನಾ ವಿಶ್ವಾಸ್ ಘೊಷಿತ್ ಕರ್ತಾ ಹೆ/
ಹಮೆಂ ವಿಶ್ವಾಸಿಯೊಂ ಕೊ ಹಮೆಶಾ ಪರೆಶಾನಿಯೊಂ ಸೆ ಲಡ್ನೆ ಕಿ ಹಿಮ್ಮತ್ ಈಶ್ವರ್ ಕೆ ಕ್ರಪಾ ಸೆ ಹಿ ಮಿಲ್ತಿ/
ಈಶ್ವರ್ ಮಾನವ್ ಕೊ ಅಪ್ನಿ ಶಕ್ತಿ ಕೆ ಪರೆ ಪರೆಶಾನಿಯಾಂ ನಹಿ ಸಹ್ನೆ ದೆತೆ/
ಮಾನವ್ ಪರೆಶಾನಿಯೊಂ ಕೊ ಆಸಾನಿ ಸೆ ನಹಿಂ ಅಪ್ನಾತಾ/
ಜಬ್ ಪರೆಶಾನಿಯೊಂ ಕಾ ಬಾಧ್ ಟೂಟ್ ಪಡ್ತಾ ತೊ ಅಕ್ಶಸ್ ಮಾನವ್ ಈಶ್ವರ್ ಕೆ ಶರಣ್ ಮೆಂ ಜಾತಾ/
ಕಇ ಬಾರ್ ಮಾನವ್ ಈಶ್ವರ್ ಕೆ ಶರಣ್ ಮೆಂ ತೊ ಜಾತಾ ಪರ್ ಉಸ್ಕೆ ಮನ್ ಮೆಂ ಎಕ್ ಪ್ರಕಾರ್ ಕಿ ದುವಿದಾ ರಹ್ತಿ ಹೆ ಕ್ಯಾ ಮೆರಿ ಪ್ರಾರ್ಥನಾ ಸುನಿ ಜಾಯೆಗಿ?
ಅನೆಕ್ ಪ್ರಕಾರ್ ಕಿ ಪರೆಶಾನಿಯಾಂ ಹೊ ಸಕ್ತಿ ಹೆಂ/
ಬಿಮಾರಿಯಾಂ, ಧನ್ ಕಿ ಆವ್ಶ್ಯಾಕತಾ, ನೊಕ್ರಿ ನ ಹೊನೆ ಕಾ, ಮಕಾನ್ ನ ಹೊನೆ ಕಾ........ ಬಚ್ಚೊಂ ಕಿ ಪಢಾಇ ಕಿ ಫಿಕರ್ ಉನ್ಕೆ ಅಚ್ಛೆ ಸ್ಕೂಲೊಂ ಮೆಂ ದಾಖ್ಲಾ ನ ಮಿಲ್ನೆ ಕಾ/
ಇನ್ ಪರೆ ಶಾನಿಯೊಂ ಕಾ ಸಾಮ್ನಾ ಕರ್ನಾ ಕಇ ಬಾರ್ ಬಹುತ್ ಕಸ್ಠ್ ಪ್ರದ್ ಹೊತಾ ಹೆ/
ಆಜ್ ಕಲ್ ಕಾ ಯುಗ್ ಮಾಧ್ಯಮೊಂ ಕಾ ಯುಗ್ ಹೆ/
ಛೊಟಿ ಸೆ ಛೊಟಿ ಬಾತ್ ಮಿನಿಟೊಂ ಮೆಂ ಸಮಾಚಾರ್ ಪತ್ರೊಂ ಸಮಾಚಾರ್ ಮಾಧ್ಯಮೊಂ ಆದಿ ಮೆಂ ಪ್ರಸಾರಿತ್ ಕಿ ಜಾತಿ/
ಅನೆಕ್ ಬಾರ್ ಯಹ್ ಸಬ್ ಸನ್ಸನಿ ಖೆಜ್ ಸಮಾಚಾರ್ ಬನಾನೆ ಕೆ ಉಧ್ದೆಶ್ಯ್ ಸೆ ಯಹ್ ಸಬ್ ಕಿಯಾ ಜಾತಾ ಹೆ/
ಪರ್ ಹಮೆಂ ಜಾಗ್ರೂಕ್ ಹೊನಾ ಹೆ/
ಆಧುನಿಕ್ ಕಾಲ್ ಕೆ ಇನ್ ಪ್ರಲೊಭನೊಂ ಸೆ ಹಮೆಂ ಢಂಸ್ನೆ ನ ದೆನಾ ಹೆ/
ಹಮೆಂ ಈಶ್ವರ್ ನೆ ಚುನ್ ಕರ್ ಉನ್ಕಿ ಪ್ರೆರಣಾ ಕಾ ಸಂದೆಶ್ ದಿಯಾ ಹೆ/
ಇಸ್ ಬಾತ್ ಕೊ ಹಮೆಂ ಕಭಿ ಭಿ ನ ಭೂಲ್ನಾ ಚಾಹಿಎ/
ಎಸಾ ಕರ್ನೆ ಸೆ ಹಮ್ ಹಮಾರೆ ವಿಶ್ವಾಸ್ ಕೆ ದಾಇತ್ವ್ ಕೊ ಅಚ್ಛಿ ತರಹ್ ಸೆ ನಿಭಾ ಪಾಯೆಂಗೆ/
ಆಜ್ ಕಾ ಸ್ತ್ರೊತ್ ಹಮೆಂ ಈಶ್ವರ್ ಕೆ ಸಾನಿಧ್ಯಮೆಂ ಚಲ್ತೆ ಸಮಯ್ ಉಸ್ಕಿ ಕ್ರಪಾ ಕಾ ಆಸ್ರಾ ಜರೂರ್ ದೆಂಗೆ/
ಸಂಸಾರ್ ಕಾ ಹರ್ ಮಾನವ್ ಜಿತ್ನೆ ಜಲ್ದಿ ಜಿತ್ನಾ ಪೆಸಾ ಕಮಾನೆ ಕಾ ಮನ್ ಕರ್ತಾ ಹೆ ಉತ್ನಾ ಹಿ ಈಶ್ವರ್ ಕೆ ಸಾನಿಧ್ಯಸೆ ದೂರ್ ಹೊತಾ ಜಾತಾ ಹೆ/
ಆಜ್ ಕಲ್ ಕೆ ಅಂತರ್ ಜಾಲ್ ಕೆ ಸಾಧನ್ ಲೊಗೊಂ ತಕ್ ಪಹುಂಚತೆ ಜರೂರ್ ಪರ್ ಉನ್ಕೆ ಜೀವ್ನ್ ಕೊ ಸುಧಾರ್ ನೆ ಕೆ ಬಜಾಯ್ ಉಸೆ ಬಿಗಾಡ್ ತೆ ಜ್ಯಾದಾ/
ಇಸ್ ಬಾತ್ ಕೊ ಹಮ್ ಸಮ್ಝೆಂ/
ಕಭಿ ಕಭಿ ಅಸ್ಹಾಯ್ ಲೊಗೊಂ ಕಿ ಮಜ್ಬೂರಿ ಕೊ ಲೊಗ್ ಆಮ್ದನಿ ಕಾ ಸಾಧನ್ ಬನಾ ದೆತೆ/
ಕಇ ನೆತಾ ಲೊಗ್ ಇಸ್ ಕೊ ಅಪ್ನಾ ಮೊಕಾ ಸಮಝ್ ಕರ್ ಉಸೆ ಅವ್ಶ್ಯ್ ಭುನಾನೆ ಕಿ ಕೊಶೀಷ್ ಕರ್ತೆ/
ಕಿತ್ನಿ ಬಾರ್ ಸರ್ಕಾರೊಂ ನೆ ಬಾಲ್ ಮಜ್ದೂರಿ ಎಕ್ ಸಾಮಾಜಿಕ್ ಕಲಂಕ್ ಹೆ ಕಹಾ ಪರ್ ಉಸೆ ಹಟಾ ನ ಸಕಿ/
ಕಿತ್ನೆ ಕಾನೂನ್ ಬನಾಯೆ ಪರ್ ಉಸೆ ಲಾಗು ನ ಕರ್ ಸಕಿ, ಹಮ್ ದೆಖ್ತೆ ಕಿ ಢಾಬೊಂ ಮೆಂ ಹೊಟೆಲೊಂ ಮೆಂ ಘರೊಂ ಮೆಂ ಬಾಲಕ್ ಬಾಲಿಕಾಒಂ ಕೊ ಮಜ್ದೂರಿ ಕೆ ಲಿಎ ಲಗಾ ಕರ್ ಉಚಿತ್ ಪಗಾರ್ ತಕ್ ನ ದೆತೆ/
ಕಿತ್ನಿ ಬಾರ್ ಕಠಿನ್ ಸೆ ಕಠಿನ್ ಪ್ರಕಾರ್ ಕೆ ವಿಗ್ಯಾಪನೊಂ ಮೆಂ ಉನ್ಕೊ ಭಾಗಿದಾರ್ ಬಾನಾತೆ ಪರ್ ಯೆ ಬಚ್ಚೆ ಕಿನ್ ಲೊಗೊಂ ಕೆ ಉನ್ಹಿ ನೆತಾಒಂ ಕೆ ಜಿನ್ಹೊಂನೆ ಯೆ ಕಾನೂನ್ ಬನಾಎ/
ಕಿತ್ನಿ ಶರ್ಮ್ ಕಿ ಬಾತ್ ಹೆ?
ಕೊನ್ ಸುಧರ್ ನೆ ಚಾಹೆಗಾ?
ಪರಮ್ ಪಿತಾ ಈಶ್ವರ್ ಹಮೆಶಾ ಸಂಕಟ್ ಮೆಂ ಫಂಸೆ ಲೊಗೊಂ ಕೊ ಹಮೆಶಾ ಸಹಾಯ್ತಾ ಪ್ರದಾನ್ ಕರ್ತೆ/
ಹಮ್ ಯಹ್ ಸಾರೆ ಪುರಾನೆ ವ್ಯವಸ್ಥಾನ್ ಕೆ ಪುಸ್ತಕೊಂ ಮೆಂ ದೆಖ್ತೆ/
ಕಿತ್ನಿ ಬಾರ್ ಉಸ್ನೆ ಅನೆಕ್ ಶಕ್ತಿಶಾಲಿ ರಾಜಾಒಂ ಕೊಂ ಛಟಿ ಕಾ ದೂಧ್ ಚಖಾಯಾ/
ಹಮ್ ಜಾನ್ತೆ ಕಿ ಪ್ರಭು ಈಸಾ ಮಸೀಹ್ ನೆ ಹಮೆಶಾ ದುಖಿ ಅಸಾಹ್ ಲೊಗೊಂ ಸೆ ಬಹುತ್ ಪ್ಯಾರ್ ಕಿಯಾ/
ಇಸಿ ಲಿಎ ಎಕ್ ಜಗಹ್ ವೆ ಕಹ್ತೆ ಭಿ ಹೆಂ ಥಕೆ ಮಾಂದೆ ಬೊಝ್ ಸೆ ಲದೆ ಲೊಗೊಂ ಮೆರೆ ಪಾಸ್ ಆಒ ಮೆಂ ತುಮೆಂ ಸಾಂತ್ವನಾ ದೂಂಗಾ/
ಈಸಾ ಕೊ ಲೊಗೊಂ ನೆ ಸಹಿ ರೂಪ್ ಸೆ ಪಹ್ಚಾನಾ ನಹಿಂ/
ಉನ್ಕಿ ಪಹ್ಚಾನ್ ಕೆವ್ಲ್ ಯೊಹನ್, ನಬಿ ಯಾ ಕೊಇ ಎಸಾ ವ್ಯಕ್ತಿ ಜೊ ಈಶ್ವರ್ ಕೆ ಪಾಸ್ ಸೆ ಆಯಾ ಹೊ/
ಈಸಾ ಮಸೀಹ್ ನೆ ಅಪ್ನೆ ಶಿಶ್ಯೊಂ ಸೆ ಪೂಛಾ, ಕಿ ವೆ ಉಸೆ ಕ್ಯಾ ಸಮಝ್ ತೆ?
ತಬ್ ಪೆತ್ರುಸ್ ನೆ ಉತ್ತ್ತರ್ ದಿಯಾ, ಆಪ್ ಈಶ್ವರ್ ಕೆ ಪುತ್ರ್, ಖ್ರಿಸ್ತ್/
ತಬ್ ಈಸಾ ಉನ್ಹೆಂ ಕಹ್ತೆ ಕಿ ವೆ ಇಸ್ ಬಾತ್ ಕೊ ಕಿಸಿ ಕೊ ನ ಕಹೆಂ ಜಬ್ ತಕ್ ಈಸಾ ಪುನ್ರ್ಜೀವಿತ್ ನ ಹೊತೆ/
ಹಮೆಂ ಅಪ್ನೆ ವಿಶ್ವಾಸ್ ಕೆ ಗುಣ್ ಕೊ ಸಹಿ ರೂಪ್ ಸೆ ಜೀನಾ ಚಾಹಿಎ/
ಈಶ್ವರ್ ನೆ ಹಮೆಂ ಉನ್ಕೆ ಜೀವ್ನ್ ಕಾ ಮಹ್ತ್ವ್ ಸಮ್ಝಾಯಾ/
ತಾಕಿ ಹಮ್ ಉನ್ಕೆ ಬೆಟೆ ಈಸಾ ಮಸೀಹ್ ಕೊ ಲೊಗೊಂ ಕೆ ಜೀವ್ನ್ ಮೆಂ ಲಾನೆ ಮೆಂ ಸಹಾಯ್ಕ್ ಬನೆಂ/
ಪರ್ ಹಮ್ ಅಪ್ನೆ ಸಂಕುಚಿತ್ ಜೀವ್ನ್ ಸೆ ಇತ್ನೆ ಘಿರ್ ಜಾತೆ ಕಿ ಹಮ್ ಅವ್ಸರ್ ಕೊ ಗವಾ ಬೆಠ್ತೆ/
ಹಮೆ ನಿರಂತರ್ ಪೆತ್ರುಸ್ ಕೆ ಸಮಾನ್ ಘೊಶಿತ್ ಕರ್ ದೆನಾ ಚಾಹಿಎ ಕಿ ಈಸಾ ಮಸೀಹ್ ಹಮಾರಾ ಸಹಾಯ್ಕ್ ಒರ್ ಮುಕ್ತಿದಾತಾ ಹೆಂ/
ಹರ್ ಪೂಜಾ ಹಮಾರೆ ಜೀವ್ನ್ ಕೊ ಎಕ್ ಅಚ್ಛಾ ಅವ್ಸರ್ ಪ್ರಧಾನ್ ಕರ್ತಾ ಹೆ/
ಈಸಾ ಕಾ ಜೀವ್ನ್ ಹಮಾರೆ ಜೀವ್ನ್ ಸೆ ಸಂಲ್ಗನ್ ಹೊನೆ ಕೆ ಲಿಎ ತತ್ಪರ್ ರಹ್ತಾ ಹೆ/
ಆಇಎ ಆಜ್ ಕಾ ಯಹ್ ಅವ್ಸರ್ ಹಮೆಂ ವಹ್ ಶಕ್ತಿ ಪ್ರದಾನ್ ಕರೆ ಕಿ ಹಮ್ ಲೊಗೊಂ ಮೆ ಚೆತ್ನಾ ಲಾಕರ್ ಸಬ್ ಕೊ ಈಶ್ವರ್ ಕೆ ರಾಜ್ಯ್ ಕಿ ಕಲ್ಪನಾ ಮೆಂ ಪರಿಣಿತ್ ಬನ್ನೆ ಲಾಯ್ಕ್ ಬನಾ ಸಕೆಂ/
ಆಪ್ಕಾ ಹಿತೆಶಿ
ಫಾದರ್ ಜುಜೆ ವಾಸ್ ಎಸ್.ವಿ.ಡಿ.
दैनिक सुविचार साधारण समय का चॊविसवां रविवार वर्ष B 16/09/12 आज का विषय: सांसारिक परेशानियां विश्वास का महत्व समझाति हॆं/
साधारण समय का चॊविसवां रविवार वर्ष B 16/09/12
आज का विषय: सांसारिक परेशानियां विश्वास का महत्व समझाति हॆं/
इसाईया नबी के ग्रंथ में से प्रथम पाठ. 50:5-9 महोन्नत के ईश्वर परेशान लोगों की सहायता अवश्य करते/
संत याकूब के पत्र में से दूसरा पाठ 2:14-18 कार्मों के आभाव में विश्वास का कोई अर्थ नहीं./
संत मर्कुस के सुसमाचार में से 8:27-35 पेत्रुस अपना विश्वास घोषित कर्ता हॆ/
हमें विश्वासियों को हमेशा परेशानियों से लडने की हिम्मत ईश्वर के क्रपा से ही मिलती/
ईश्वर मानव को अपनी शक्ती के परे परेशानियां नही सहने देते/
मानव परेशानियों को आसानी से नहीं अपनाता/
जब परेशानियों का बाध टूट पड्ता तो अक्शस मानव ईश्वर के शरण में जाता/
कई बार मानव ईश्वर के शरण में तो जाता पर उसके मन में एक प्रकार की दुविदा रहती हॆ क्या मेरी प्रार्थना सुनी जायेगी?
अनेक प्रकार की परेशानियां हो सकती हॆं/
बिमारियां, धन की आवश्याकता, नॊकरी न होने का, मकान न होने का........ बच्चों की पढाई की फिकर उनके अच्छे स्कूलों में दाखला न मिलने का/
इन परे शानियों का सामना करना कई बार बहुत कस्ठ प्रद होता हॆ/
आज कल का युग माध्यमों का युग हॆ/
छोटि से छोटी बात मिनिटों में समाचार पत्रों समाचार माध्यमों आदि में प्रसारित की जाती/
अनेक बार यह सब सनसनी खेज समाचार बनाने के उध्देश्य से यह सब किया जाता हॆ/
पर हमें जागरूक होना हॆ/
आधुनिक काल के इन प्रलोभनों से हमें ढंसने न देना हॆ/
हमें ईश्वर ने चुन कर उनकी प्रेरणा का संदेश दिया हॆ/
इस बात को हमें कभी भी न भूलना चाहिए/
ऎसा करने से हम हमारे विश्वास के दाइत्व को अच्छी तरह से निभा पायेंगे/
आज का स्त्रोत हमें ईश्वर के सानिध्यमें चलते समय उसकी क्रपा का आसरा जरूर देंगे/
संसार का हर मानव जितने जल्दी जितना पॆसा कमाने का मन करता हॆ उतना ही ईश्वर के सानिध्यसे दूर होता जाता हॆ/
आज कल के अंतर जाल के साधन लोगों तक पहुंचते जरूर पर उनके जीवन को सुधार ने के बजाय उसे बिगाड ते ज्यादा/
इस बात को हम समझें/
कभि कभि असहाय लोगों की मजबूरि को लोग आमदनी का साधन बना देते/
कई नेता लोग इस को अपना मॊका समझ कर उसे अवश्य भुनाने की कोशीष करते/
कितनी बार सरकारों ने बाल मजदूरी एक सामाजिक कलंक हॆ कहा पर उसे हटा न सकी/
कितने कानून बनाये पर उसे लागू न कर सकी, हम देखते कि ढाबों में होटेलों में घरों में बालक बालिकाओं को मजदूरी के लिए लगा कर उचित पगार तक न देते/
कितनी बार कठिन से कठिन प्रकार के विग्यापनों में उनको भागिदार बानाते पर ये बच्चे किन लोगों के उन्ही नेताओं के जिन्होंने ये कानून बनाए/
कितनी शर्म की बात हे?
कोन सुधर ने चाहेगा?
परम पिता ईश्वर हमेशा संकट में फंसे लोगों को हमेशा सहायता प्रदान करते/
हम यह सारे पुराने व्यवस्थान के पुस्तकों में देखते/
कितनी बार उसने अनेक शक्तिशाली राजाओं कों छटी का दूध चखाया/
हम जानते कि प्रभु ईसा मसीह ने हमेशा दुखी असाह लोगों से बहुत प्यार किया/
इसी लिए एक जगह वे कहते भी हॆं थके मांदे बोझ से लदे लोगों मेरे पास आओ मॆं तुमें सांत्वना दूंगा/
ईसा को लोगों ने सही रूप से पहचाना नहीं/
उनकी पहचान केवल योहन, नबी या कोई ऎसा व्यक्ति जो ईश्वर के पास से आया हो/
ईसा मसीह ने अपने शिश्यों से पूछा, कि वे उसे क्या समझ ते?
तब पॆत्रुस ने उत्त्तर दिया, आप ईश्वर के पुत्र, ख्रिस्त/
तब ईसा उन्हें कहते कि वे इस बात को किसी को न कहॆं जब तक ईसा पुनर्जीवित न होते/
हमें अपने विश्वास के गुण को सही रूप से जीना चाहिए/
ईश्वर ने हमें उनके जीवन का महत्व समझाया/
ताकि हम उनके बॆटे ईसा मसीह को लोगों के जीवन में लाने में सहायक बनें/
पर हम अपने संकुचित जीवन से इतने घिर जाते कि हम अवसर को गवा बॆठ्ते/
हमे निरंतर पेत्रुस के समान घोशित कर देना चाहिए कि ईसा मसीह हमारा सहायक ऒर मुक्तिदाता हॆं/
हर पूजा हमारे जीवन को एक अच्छा अवसर प्रधान करता हॆ/
ईसा का जीवन हमारे जीवन से संलगन होने के लिए तत्पर रहता हॆ/
आइए आज का यह अवसर हमें वह शक्ति प्रदान करे कि हम लोगों मे चेतना लाकर सब को ईश्वर के राज्य की कल्पना में परिणित बनने लायक बना सकें/
आपका हितॆशी
फादर जुजे वास एस.वि.डी.
आज का विषय: सांसारिक परेशानियां विश्वास का महत्व समझाति हॆं/
इसाईया नबी के ग्रंथ में से प्रथम पाठ. 50:5-9 महोन्नत के ईश्वर परेशान लोगों की सहायता अवश्य करते/
संत याकूब के पत्र में से दूसरा पाठ 2:14-18 कार्मों के आभाव में विश्वास का कोई अर्थ नहीं./
संत मर्कुस के सुसमाचार में से 8:27-35 पेत्रुस अपना विश्वास घोषित कर्ता हॆ/
हमें विश्वासियों को हमेशा परेशानियों से लडने की हिम्मत ईश्वर के क्रपा से ही मिलती/
ईश्वर मानव को अपनी शक्ती के परे परेशानियां नही सहने देते/
मानव परेशानियों को आसानी से नहीं अपनाता/
जब परेशानियों का बाध टूट पड्ता तो अक्शस मानव ईश्वर के शरण में जाता/
कई बार मानव ईश्वर के शरण में तो जाता पर उसके मन में एक प्रकार की दुविदा रहती हॆ क्या मेरी प्रार्थना सुनी जायेगी?
अनेक प्रकार की परेशानियां हो सकती हॆं/
बिमारियां, धन की आवश्याकता, नॊकरी न होने का, मकान न होने का........ बच्चों की पढाई की फिकर उनके अच्छे स्कूलों में दाखला न मिलने का/
इन परे शानियों का सामना करना कई बार बहुत कस्ठ प्रद होता हॆ/
आज कल का युग माध्यमों का युग हॆ/
छोटि से छोटी बात मिनिटों में समाचार पत्रों समाचार माध्यमों आदि में प्रसारित की जाती/
अनेक बार यह सब सनसनी खेज समाचार बनाने के उध्देश्य से यह सब किया जाता हॆ/
पर हमें जागरूक होना हॆ/
आधुनिक काल के इन प्रलोभनों से हमें ढंसने न देना हॆ/
हमें ईश्वर ने चुन कर उनकी प्रेरणा का संदेश दिया हॆ/
इस बात को हमें कभी भी न भूलना चाहिए/
ऎसा करने से हम हमारे विश्वास के दाइत्व को अच्छी तरह से निभा पायेंगे/
आज का स्त्रोत हमें ईश्वर के सानिध्यमें चलते समय उसकी क्रपा का आसरा जरूर देंगे/
संसार का हर मानव जितने जल्दी जितना पॆसा कमाने का मन करता हॆ उतना ही ईश्वर के सानिध्यसे दूर होता जाता हॆ/
आज कल के अंतर जाल के साधन लोगों तक पहुंचते जरूर पर उनके जीवन को सुधार ने के बजाय उसे बिगाड ते ज्यादा/
इस बात को हम समझें/
कभि कभि असहाय लोगों की मजबूरि को लोग आमदनी का साधन बना देते/
कई नेता लोग इस को अपना मॊका समझ कर उसे अवश्य भुनाने की कोशीष करते/
कितनी बार सरकारों ने बाल मजदूरी एक सामाजिक कलंक हॆ कहा पर उसे हटा न सकी/
कितने कानून बनाये पर उसे लागू न कर सकी, हम देखते कि ढाबों में होटेलों में घरों में बालक बालिकाओं को मजदूरी के लिए लगा कर उचित पगार तक न देते/
कितनी बार कठिन से कठिन प्रकार के विग्यापनों में उनको भागिदार बानाते पर ये बच्चे किन लोगों के उन्ही नेताओं के जिन्होंने ये कानून बनाए/
कितनी शर्म की बात हे?
कोन सुधर ने चाहेगा?
परम पिता ईश्वर हमेशा संकट में फंसे लोगों को हमेशा सहायता प्रदान करते/
हम यह सारे पुराने व्यवस्थान के पुस्तकों में देखते/
कितनी बार उसने अनेक शक्तिशाली राजाओं कों छटी का दूध चखाया/
हम जानते कि प्रभु ईसा मसीह ने हमेशा दुखी असाह लोगों से बहुत प्यार किया/
इसी लिए एक जगह वे कहते भी हॆं थके मांदे बोझ से लदे लोगों मेरे पास आओ मॆं तुमें सांत्वना दूंगा/
ईसा को लोगों ने सही रूप से पहचाना नहीं/
उनकी पहचान केवल योहन, नबी या कोई ऎसा व्यक्ति जो ईश्वर के पास से आया हो/
ईसा मसीह ने अपने शिश्यों से पूछा, कि वे उसे क्या समझ ते?
तब पॆत्रुस ने उत्त्तर दिया, आप ईश्वर के पुत्र, ख्रिस्त/
तब ईसा उन्हें कहते कि वे इस बात को किसी को न कहॆं जब तक ईसा पुनर्जीवित न होते/
हमें अपने विश्वास के गुण को सही रूप से जीना चाहिए/
ईश्वर ने हमें उनके जीवन का महत्व समझाया/
ताकि हम उनके बॆटे ईसा मसीह को लोगों के जीवन में लाने में सहायक बनें/
पर हम अपने संकुचित जीवन से इतने घिर जाते कि हम अवसर को गवा बॆठ्ते/
हमे निरंतर पेत्रुस के समान घोशित कर देना चाहिए कि ईसा मसीह हमारा सहायक ऒर मुक्तिदाता हॆं/
हर पूजा हमारे जीवन को एक अच्छा अवसर प्रधान करता हॆ/
ईसा का जीवन हमारे जीवन से संलगन होने के लिए तत्पर रहता हॆ/
आइए आज का यह अवसर हमें वह शक्ति प्रदान करे कि हम लोगों मे चेतना लाकर सब को ईश्वर के राज्य की कल्पना में परिणित बनने लायक बना सकें/
आपका हितॆशी
फादर जुजे वास एस.वि.डी.
ಶುಕ್ರವಾರ, ಸೆಪ್ಟೆಂಬರ್ 14, 2012
ಗುರುವಾರ, ಸೆಪ್ಟೆಂಬರ್ 13, 2012
24th Sunday in Ordinary Time year B 16/09/12 Theme: Meaning of Suffering.
24th Sunday in Ordinary Time year B 16/09/12
Theme: Meaning of Suffering.
1st Reading Is. 50:5-9Yahweh helps his suffering servant.
2nd Reading: James 2:14-18 good works are result of genuine faith.
Gospel Mk 8:27-35 Jesus sees himself in the suffering servant of Isaiah.
To ‘suffer’ means to undergo, to endure something that is not under our power; and that ‘something’ often bears the mark of discomfort, loss or pain.
When we suffer illness we lose a most precious gift of life, health, and find ourselves in a very vulnerable place filled with fear, uncertainty.
The responsorial psalm shows how a man cries in praise when saved from death.
psalm tells that the psalmist will walk in the presence of the Lord in the land of the living……
The media uses sensational news to make money.
This will help them for a time.
Helpless children used for pleasure become the lead stories of media.
There are People who try to cover such stories to use, helpless children as the source of their sleazy news.
We hear so much of bonded labor but not one case comes to light.
People who suffer are still being used to gain power and wealth.
The suffering helpless people go on suffering.
What is the solution to such evil in the midst of society?
We are followers of Jesus who is the one who has over come all the suffering in this world.
He told us he came to free us from all evil.
Now we are in this world.
Surrounded by so many opportunities, in our own country though we have religious persecution in the national anthem we are called Christians meek.
These opportunities are a stepping stone to make our life a better source for our future.
Our surroundings are constantly challenging us to face the reality of life.
Often we try to find solutions from our friends who are also misguided by other misguided sources.
It is high time we turned our eyes towards one teacher who would never lead us astray, i.e.; Jesus the Lord and savior.
He tells us his identity is not hidden from us.
He is the one who understands nature and its beauty,
He asks us the same question he asked his disciples.
“who am I”
With Peter we have to confidently say you are Christ the son of the living God.
Once this reality becomes clear to us then the meaning of the savior becomes clear to us.
All around us we find so much of suffering, pain and misery about which we have already seen at the beginning of this reflection.
Christ has given meaning to all the suffering.
Every suffering is geared to the salvation of the human beings.
Often it is not easy to find this meaning because of our limited vision.
There are crosses that keep us bogged down.
Crosses like bad habits, bad language, bad company, which constantly keep us off the target.
Once we become aware of these situations we will be able to overcome these limitations.
The first reading where the prophet Isaiah confidently able to face all hardships, his confidence is in the defending savior.
Saint James gives us a reason for belief.
Faith he says depends of the good activities.
Helping people in need is a character of a good faithful.
In the Gospel, Jesus is very clear about his mission.
Though he has some doubt about his followers.
His own future leader openly confesses this and say Jesus is the Christ.
This confession gives Peter the position of first among the equals “Primus inter Pares”.
Christ says he is not only Christ but he is the suffering Christ.
Hearing this Peter tells him he does not like this suffering person.
Jesus tells Peter to be out of his sight.
Because Jesus knew such attitude will hinder him from his mission.
In our lives too there are opportunities which will not come as sources of deepening our faith.
Let this Sunday give us sufficient knowledge of our mission in life.
To be a source of grace to our fellow traveler on the way to heavenly kingdom.
Yours ever in the divine word,
Fr. Juze Vas svd
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