ಶುಕ್ರವಾರ, ಅಕ್ಟೋಬರ್ 12, 2012

अठ्ठावीसवां रविवार साधारण काल का वर्ष B 14-10-12 विषय: ईश वचन/


अठ्ठावीसवां रविवार साधारण काल का वर्ष B 14-10-12 विषय: ईश वचन/ ग्याव वाणी ग्रंथ में से पहला पाठ 7:7-11 ग्यान वाणी का वरदान के लिए सोलोमन राजा की प्रार्थना/ हिब्रुओं के नाम पत्र में से दूसरा पाठ 4: 12-13 ईश वचन दुधारी तल्वार से भी तीक्ष्ण होता हॆ/ संत मार्क्रुस के सुसमाचार में से 10:17-30 ईसा का शिश्य बनने के लिए दॊलत को त्यगना होगा/ आज हम सब इस पवित्र पूजा में भाग ले कर हमारे विश्वास के वरदान को द्रढ कर सकते/ आज हमने ती पाठ सुने जिसमें ईश वचन के महत्व को समझाने के प्रयत्न हुआ हॆ/ ग्यान वाणी के ग्रंथ में हम देखते कि सोलोमन राजा ग्यान को धन से पहला स्थान देते/ वह जानता कि उसे जब ग्यान प्राप्त होगा तो दूसारा धन आसानी से मिलेगा/ ग्यान की प्राप्ति के लिए वह हर चीज का त्याग करने पीछे न हटता/ ईश्वर ने उसे भरपूर ग्यान का दान प्रदान किया/ हम विश्वासी इस संसार के यात्री हॆं जहां जीने के समय पग पग पर हमें ग्यान की आवश्यकता हेती हे/ इस प्रेरणादाई ग्यान की पूर्ति हमें केवल ईश्वर के ग्यान पर आधार रखने से ही संभव हॆ/ आधुनिक युग में हमें जीने का जो मॊका मिला हे, जहां हमें अनेक सुख सुविधायें मिली हॆं/ कमी हे तो शांती ऒर ग्यान की/ इसे हमे केवल ईश क्रपा के अनुकंपासे प्राप्त कर सकते/ इस संसार में जीने के लिए ईश्वर ने मानव जाती को तरह तरह की बुध्दी का वरदान दिया हे/. जब हम एक साथ लोगों में मिल जुल कर रहने सीखते तो वास्तव में ईश्वर के आत्मा का संचार हमें प्रवेष करे गा/ क्यों कि ईश्व वचन दोधारी तल्वार से भी धार दार ऒर तॆज होता हे/ हमें वास्तविकता से सोचने की ताकत देता हॆ/ यद्यपी आधुनिक युग में लोग एक दूसरे को नीचे दिखाने की कोशीश करते फिरभी यदी हम ईश प्रेरणा पर विश्वास रखें गे तो वह हमें उसके ग्यान का वरदान अवश्य देगा/ आधुनिक युग में हम एक दूसरे पर आवलंभित हॆं/ इस आवलंभन को मूर्थरूप हम तभी दे सकते कि हम ईश प्रेरणा से परिपूरित हो कर अपना काम कर्ने लायक बने/ यह तभी संभव हे जब हम ईश ग्यान को हमारे जीवन के कार्य शेली में प्रमुख स्थान दें/ इसी कारण जब ईसा से मिलने एक अमीर युवक आया ऒर उसका शिष्य बनने की याचना करने लगा तो ईसा ने उसे त्याग भावना अपनाने का निमंत्रण दिया/. पर वह एक बहुत अमीर युवक था जो धन दॊलत को त्यागना पसंद न करता था/ जब ईसाने इस की आशा की तो वह निराष होकर ईसा से दूर गया/ तब उसके अन्य शिष्य ईसा से सवाल करने लगे, क्या उन्हें कुछ प्राप्त होगा? क्यों कि उन्हों ने तो सब कुछ त्याग दिया हॆ/ इस पर ईसा उन्हें सांत्वना दे कहते कि अनंत जीवन प्राप्ती ही उनके त्याग का सबसे उत्तम वरदान हॆं/ हम विश्वासि ईसा के अनुयाई बने हॆं, निरंतर उनकी बात उनके वचन की प्रेरणा से यदी हम अपना जीवन व्यतीत करें तो अवश्य हमें अनंत जीवन मिलेगा/. इस संसार में अनेक प्रकार के प्रलोभन हमें ईश्वर के राज्य से विमुक्त करने की कोषीश करेंगे/ यदि हम अपने जीवन के लक्ष्य को न भूलेंगे तो हमें अनंत जीवन की प्राप्ति से कोई रोख न सकता/ आपका हितॆषी फादर जुजे वास एस.वि.डि.

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